39 साल पहले की वो काली रात जब जहरीली गैस से कई हजारों की जान!
Bhopal Gas Tragedy in Hindi: आज भी साल 1984 को भारतीय इतिहास में एक भयानक घटना के रूप में याद किया जाता है। भोपाल गैस त्रासदी। साल 1984 में हुई यह घटना न सिर्फ स्थानीय समस्या बनी, बल्कि इसने इंडस्ट्री के साथ सुरक्षा की महत्वपूर्णता को भी जांचने का संदेश दिया। तो चलिए आज इस ब्लॉग में हम इसी भयानक घटना (Bhopal Gas Tragedy in Hindi) के बारे में बात करेगें और यह भी जानेंगे कि भविष्य में इस तरह की घटना होने से कैसे रोक सकते हैं।
कैसे हुई Bhopal Gas Tragedy की शुरुआत?
2 दिसंबर, 1984 को रात के 12 बजे भोपाल शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित यूनियन कैबाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के प्लांट से एक विषाणु गैस लीक हो गई थी। इस गैस का नाम मेथाइल इजोसायनेट (MIC) था, जो एक जानलेवा गैस है। बता दें कि इस गैस के संपर्क में आने से लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। आपको बता दें कि इस दुर्घटना में 3,787 लोगों की मौत हुई थी। साथ ही 5.74 लाख से ज्यादा लोग घायल या अपंग हो गए थे। दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट में बताए गए आंकड़े के मुताबिक इस दुर्घटना में 15,724 लोगों की जान गई थी।
इस दुर्घटना का मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन था। उस दौरान वॉरेन एंडरसन कंपनी का CEO था। 6 दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि, 7 दिसंबर को उन्हें सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया। फिर वहां से वह अमेरिका चले गए। जिसके बाद वह कभी भारत नहीं आए। इसके चलते अदालत ने उन्हें फरार घोषित कर दिया था। साल 2014 में फ्लोरिडा के वीरो बीच पर 93 साल की उम्र में वॉरेन एंडरसन की मौत हो गई थी।
Bhopal Gas Tragedy का कारण क्या था?
आपको बता दें कि मेथाइल इजोसायनेट (MIC) गैस लीक होने के पीछे कई कारण थे। इसमें सबसे प्रमुख कारण था लापरवाही और उद्योग सुरक्षा की कमी। संयुक्त राज्य और केंद्र सरकारों के बीच साझा जिम्मेदारी के बावजूद, इस प्लांट की निगरानी में कमी थी और सुरक्षा के तंत्रों में कमी बढ़ रही थी। भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के पीछे एक और वजह थी और वह थी भूकंपों में कमी। बता दें कि गैस ताकतवर भूकंप के कारण बाहर निकल गई थी और सुरक्षा में कमी के चलते यह तेजी से फैल गई।
Bhopal Gas Tragedy का प्रभाव
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) ने लोगों की जिंदगी पर बहुत भयानक प्रभाव डाला। Bhopal Gas Tragedy की वजह से लाखों से ज्यादा लोग घायल या अपंग हो गए और कई हजारों लोग जीवन से हार गए। सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से एक था तटीय नगर और इसके आस-पास के क्षेत्र। वहां के लोग अपने घरों को छोड़ने के बावजूद बचने में सक्षम नहीं थे और उन्हें इलाज के लिए उचित सुविधाएं नहीं मिल पाई।
Bhopal Gas Tragedy ने वहां के लोगों के जीवन को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया और उन्हें नींद के बादल में उठा दिया। लोगों को अचानक सांस लेने में मुश्किल हो रही थी, और उन्हें त्वचा संबंधित और श्वास-संबंधित रोगों की भी समस्या हो रही थी।
जानिए क्या है मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC)?
मिथाइल आइसोसायनेट (MIC) एक बिना रंग का तरल है। इसका प्रयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता है। यदि सुरक्षित स्टोरेज का बंदोबस्त करें तो MIC सेफ है, हालांकि रसायन गर्मी मिलने पर यह बहुत तेजी से फैल जाता है। पानी के संपर्क में आने पर मिथाइल आइसोसायनेट (MIC) रिएक्ट करता है। बता दें कि गर्मी का रिएक्शन होने पर जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है।
मिथाइल आइसोसाइनेट की गंभीरता को देखते हुए अब इसका उत्पादन नहीं किया जाता, लेकिन यह अभी भी कीटनाशकों में इस्तेमाल किया जाता है। आज के समय में अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया में बायर क्रॉपसाइंस प्लांट इंस्टीट्यूट (The Bayer CropScience plant in Institute) दुनिया भर में सिर्फ एक ऐसी जगह है, जहां एमआईसी का भंडारण होता है।
Bhopal Gas Tragedy पर सरकार की प्रतिक्रिया
साल 1984 में भारत सरकार इस तरह की भयानक घटना से बिलकुल अनजान थी। इस तरह की क्राइसिस मैनेजमेंट का मौका कभी नहीं आया था। भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के ठीक बाद भारत, यूनियन कार्बाइड और अमेरिका के बीच कानूनी कार्यवाही शुरू की गई।
बता दें कि साल 1985 में सरकार ने Bhopal Gas Tragedy अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम से पीड़ितों के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने की अनुमति मिली।
शुरुआत में UCC (Union Carbide Corporation) ने भारत को 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रिलीफ फंड ऑफर किया, हालांकि इस ट्रेजेडी की भयावहता से आक्रोशित भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (Union Carbide Corporation) से 3.3 बिलियन डॉलर का मुआवजा मांगा।
Bhopal Gas Tragedy जैसी भयानक घटना को रोकने के लिए क्या करें?
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) से हमें बहुत सी महत्वपूर्ण सीखें मिलती हैं।
- पहली बात तो यह कि उद्योगों को सुरक्षा के प्रति सतर्क रहना चाहिए और वे सभी सुरक्षा नियमों का पूरी तरह से पालन करें।
- दूसरी बात, सरकारों को स्थानीय निगरानी को मजबूत करना चाहिए और उद्योगों की सुरक्षा को लेकर सख्ती से कदम उठाने चाहिए। इसमें उद्योगियों के लिए दंड और उपायों का स्थानीय स्तर पर तत्परता से प्रयोग करना शामिल है।
- तीसरी बात, जनता को भी सतर्क रहना चाहिए। वे अपने अधिकारों का पूरी तरह से इस्तेमाल करें और यदि कोई सुरक्षा संबंधित समस्या आती है तो तुरंत सूचना दें।
निष्कर्ष
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) ने हमें यह सिखाया है कि सुरक्षा में लापरवाही की कोई जगह नहीं है। यह एक सख्त चेतावनी है कि यदि हम सुरक्षा को हल्के में लेते हैं, तो यह हमारे जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है।
सरकारों को उद्योगों की सुरक्षा की निगरानी में सुधार करना जरूरी है और उन्हें उद्योग सुरक्षा के नियमों का पूरी तरह से पालन करना भी आवश्यक है। इसके अलावा, जनता को भी सक्रिय रूप से इस प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए ताकि उनकी सुरक्षा के प्रति भी सही से ध्यान जाए।
इस सारे मामले को मजबूती से देखते हुए हमें आत्मनिर्भर और सुरक्षित उद्योगी बनने के लिए कदम उठाना होगा।