तुम कलयुग की 'राधा' हो तुम पूज्य न हो पाओगी...! कितना भी अलौकिक और नैतिक प्रेम हो तुम्हारा तुम दैहिक पैमाने पर नाप दी जाओगी...! तुम मित्र ढूँढोगी वे प्रेमी बनना चाहेंगे तुम आत्मा सौंप दोगी वें देह पर घात लगाएंगे पूर्ण समर्पित होकर भी तुम 'राधा' ही रहोगी 'रुक्मणी' न बन पाओगी...! पुरुष किसी भी युग के हो वें पुरुष हैं... अतः सम्माननीय हैं तुम तो स्त्री हो तुम ही चरित्रहीन कहलाओगी...! ओ युग और था ये युग कुछ और हैं तब 'राधा'होना पूज्य था अब राधा होना हेय हैं तुम विकल्प ही रहोगी प्राथमिकता न हो पाओगी...! एक पुरुष होकर जो स्त्री की 'मित्रता'की मर्यादा समझे निःस्वार्थ प्रेम से उसे पोषित करे समाज के दूषित नजरों से बचाकर अपने ह्रदय में अक्षुण रखे वो मित्रा कहाँ से लाओगी? वो 'कृष्ण'कहाँ से लाओगी? तुम कलयुग की राधा हो तुम पूज्य न हो पाओगी...!