1920 के बाद गाँधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन का उदेश्य था अंग्रेजो को मदद मत करो। अंग्रेज हमारे देश में पैसा कमाने आये थे।
इनका पैसा ख़त्म करदो खुद चले जायेंगे। सब कपड़ा खुद से बनाओ, अपना स्कूल खोलो , अंग्रेजो के स्कूल में बच्चो को पढ़ने के लिए मत भेजो। अंग्रेजो के लिए बिलकुल भी काम मत करो , अंग्रेजो का सरकार गिरा दो ओ खुद चले जायेंगे।
ब्रिटिश सरकार बहुत दुखी हो गई थी , उनका पैसा ख़त्म होने लग गया था। भारतीय नेताओ ने अपने बहुत सारे स्कूल ,कॉलेज विद्यापीठ बनाना शुरू कर दिए : गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ, कशी विद्यापीठ, बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी, जामिआ मिलिआ इस्लामिआ। मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहरलाल नेहरू, चित्तरंजन दास, सरदार वल्लभभाई पटेल ये सब उस समय कोर्ट का वकील हुआ करते थे।
इन लोगो ने कोर्ट में जाना छोर दिया। स्वदेशी प्रोडक्ट का उपयोग करेंगे , अपने देश में बना सामान ही खरीदेंगे। गाँधी बोलने लगे अपना चरखा चलाओ खुद से कपडे बनाओ। फ़रवरी 1922 की बात थी जब चौरी चौरा पुलिस थाने के सामने से लोग असहयोग आंदोलन के नारे लगते हुए गुजर रहे थे।
वहां पर पुलिस वालो ने लोगो को पीटने लग गए तब कुछ लोगो ने मिल कर पुलिस थाने में ही आग लगा दिया और उस आग में जलकर 22 पुलिस वाले मर गए। गाँधी जी कहने लगे मैं देश को अहिंसा से आजाद कराना चाहता हूँ फिर इन बेचारे पुलिस वालो को मारा। गाँधी कहे कि “किसी ने तुम्हारी आँख फोरी ,तुम उसका आँख फोड़े तो इस तरह पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी” . गाँधी बोले मुझे ये तरीका सही नहीं लगा मैं असहयोग आंदोलन वापस ले रहा हूँ।
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तब लोग गाँधी से सवाल पूछने लग गए जब तुम्हारा मन करे आंदोलन चालू जब तुम्हारा मन करे आंदोलन बंद ये क्या बात हुई।
असहयोग आंदोलन के समय पूरा देश इक्क्ठा हो चूका था। थोड़ा दिन और यह आंदोलन चलता तो देश 1925 -26 में ही आजाद हो जाता। लेकिन गाँधी 22 पुलिस वालो के मौत के चलते देश नजरअंदाज करते हुए असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गाँधी के इस बात को किसी ने भी पसंद नहीं किया। असहयोग आंदोलन करने चलते अंग्रेजो ने गाँधी को डाल दिया।
जमुना लाल बजाज को गाँधी पुत्र माना जाता हैं इन्होने खादी उद्योग, स्कूल कॉलेज खोला हुआ था। जमुना लाल इन सब कामो के लिए काफी पैसा खर्च किया था। गाँधी को असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण ये सारे उद्योग बंद गए। जमुना गाँधी को बहुत बोले कि आपने बहुत गलत किया असहयोग आंदोलन वापस ले कर।
भगत सिंह अपने टीम के साथ गाँधी जी का असहयोग आंदोलन में मदद करना चाहते थे। भगत सिंह असहयोग आंदोलन से जुड़ चुके थे।
उस समय गाँधी और भगत सिंह एक साथ ही हुआ करते थे। जब गाँधी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तो इन लोगो का विश्वास गाँधी से ख़त्म हो गया। आजादी के इतने नजदीक आकर आंदोलन वापस ले लेना कहा का बुद्धिमानी हैं। अब आप लोग कमेंट बॉक्स में बताइये गाँधी ने आंदोलन वापस ले लिया।ये उनका मज़बूरी था या जरुरी या गाँधी ने आंदोलन वापस लेकर सही किया या गलत।
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