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आचार्य चाणक्य तीन ऐसे दुःख बताए जो इंसान को अंदर से खोखला कर देता हैं। इन तीनों दुःखों में से यदि कोई भी एक दुःख आपके घर में हैं तो घर का रौनक, सुख – शांति, चहल – पहल सभी ख़त्म हो जाता हैं। तो चलिए जान लेते हैं उन दिन दुःखों के बारे में।

शक्की जीवनसाथी
शक का कोई इलाज नहीं हैं। यदि व्यक्ति दिमाग में एक बार शक के पौधा पनप गए तो जीवन बर्बाद हो जाता हैं। शक एक ऐसी बीमारी हैं जो शादीशुदा जीवन में जहर से भी जाता खतरनाख होता हैं। पति को पत्नी पर या पत्नी को अपने पति पर एक बार भी शक हो गया तो समझलो दोनों एक साथ कभी भी सुखी जीवन नहीं जी सकते। शक के कारण कभी – कभी पति – पत्नी एक दूसरे को तलाक तक देते हैं ।
विधवा बेटी
हर माता – पिता का सपना होता हैं कि अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे लड़के से अच्छे घर में हो। बेटी का विदाई हर माता-पिता के लिए बहुत ही तकलीफ़ भरा होता हैं। लेकिन उससे भी बड़ा तकलीफ़ तब होता हैं जब माता – पिता के जीते जी बेटी विधवा हो जाती हैं। यह ऐसा तकलीफ़ भरा दुःख हैं जो न सिर्फ बेटी की खुशियां छिनता हैं बल्कि ससुराल और मायके दोनों घरों की रौनक ख़त्म कर देता हैं।
निकम्मा बेटा
हर माता – पिता का सपना होता हैं कि बेटा आदर्शवादी बने, खूब तरक्क़ी करे। बुढ़ापे में माता – पिता सहारा बने। लेकिन जब पुत्र ही निकम्मा निकल जाये तो उनके लिए इससे बड़ा दुःख और कुछ नहीं हो सकता हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भले ही पुत्र एक हो लेकिन योग्य और बुद्धिमान हो तो माता – पिता यश, नाम चारों दिशाओं फ़ैल जाता हैं, और तो और माता – पिता को कभी भी वृद्धाश्रम में जाने की नौबत नहीं आता हैं। इसीलिए हर माता – पिता अपने पुत्र या पुत्री के संस्कार और संगति पर बचपन से ध्यान देना चाहिए।
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ये चार चीजे इंसान के जन्म से पहले ही तय हो जाती हैं।