Bhagwan Ram Biography in Hindi। Ram Navami kyu manaya jata hai

भगवान राम का जीवन परिचय।

Bhagavan Ram Biography in Hindi। Ram Navami kyu manaya jata hai। भगवान राम का जीवन परिचय।
Bhagavan Ram Biography in Hindi। Ram Navami kyu manaya jata hai। भगवान राम का जीवन परिचय।

आज हम भगवान राम के जीवन के बारे में जानने वाले हैं , जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कल नवमीं हैं और कल ही के दिन भगवान श्री राम प्रभु का जन्म हुआ था, इस शुभ अवसर मैंने सोचा क्यों न लोगो भगवान राम जे जीवन के बारे संक्षिप्त में जानकारी दी जाए।

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भगवान श्री राम , भगवान श्री विष्णु के सातवें अवतार हैं के रूप में अयोध्या के महान सम्राट महाराज दशरथ के घर में जन्म लिए थे। भगवान राम महाराज दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे तथा महाराज दशरथ के तीन और पुत्र थे जिनका नाम हैं – भरथ, लक्ष्मण एवं सबसे छोटे का नाम शत्रुघन। महाराज दशरथ के पुत्री भी थी। जो इन चारों भाइयों ( राम, भरथ, लक्ष्मण, शत्रुघन ) से भी बड़ी थी। यानि कि भगवान श्री राम के एक बड़ी बहन भी थी। जिनके बारे में हमें बहुत कम सुनने को मिलता हैं।

राम नवमी क्यों मानते हैं?

हमारे देश में आज के समय में भी कुछ ऐसे लोग रहते हैं जिनको ये तक पता नहीं होता कि राम नवमी क्यों मनाया जाता हैं। तो आज मैं उनलोगों को बताऊंगा कि राम नवमीं क्यों मनाया जाता हैं?

भगवन राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। ये संसार राम को, श्री रामचंद्र एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम से भी जानती हैं। भगवान श्री राम का जन्म माता कौशल्या के गर्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। यानि की भगवान राम का जन्म चैत्र महीने में नवमीं के दिन हुआ था , इसीलिए इस दिन राम नवमीं मनाया जाता हैं। यानि कि भगवान राम का जन्मदिन मनाया जाता हैं।




भगवान राम के बहन का क्या नाम था ?

गिने चुने लोग ही जानते हैं कि भगवान राम की कोई बहन भी थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान राम कि एक बहन थी जो कि भगवन राम से भी उम्र में बड़ी थी। उनका नाम था शांता। लेकिन इनके बारे में बहुत कम जानकरी मिलती हैं , और मिलती हैं उसे भी लोग जानना नहीं चाहते हैं। भगवान राम सहित भरथ लक्ष्मण, शत्रुघन को सब जनता हैं लेकिन उनकी सगी बहन के बारे में कोई नहीं जनता।

भगवान राम की बाल कथा एवं विवाह।

भगवान राम बचपन से ही काफी शांत स्वभाव के थे। भगवन श्री राम मर्यादा को सबसे ऊँचे स्थान पर रखते थे। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहाँ जाता हैं। महर्षि विश्वामित्र तपो भूमि को ताड़का नामक राक्षसी ने उत्पात मचा दिया था , आज के समय में यह तपो भूमि बिहार के बक्सर जिला स्थित हैं। ताड़का नामक राक्षसी के उत्पात से महर्षि विश्वामित्र तंग आकर अयोध्या गए और भगवान श्री राम को अपने साथ ले जाने के लिए महाराज दशरथ से आज्ञा मांगी। भगवान राम के साथ जाने के लक्ष्मण भी तैयार हो गए।




महर्षि विश्वामित्र भगवान श्री राम , लक्ष्मन को साथ लिए , ताड़का नामक राक्षसी से निपटने के लिए आज के बिहार राज्य के बक्सर जिला के तरफ चल दिए जो कि उस समय महर्षि विश्वामित्र का तपो भूमि हुआ करता था। आपके जानकारी के लिए बता दे कि महर्षि विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि बनने से पहले एक राजा थे जिनका नाम था विश्वरथ बाद में विश्वरथ से विश्वामित्र बन गए।

ताड़का कौन थी उसका अंत कैसे हुआ

कालांतर में विश्वामित्र की तपो भूमि राक्षसों से आक्रांत हो गई थी। ताड़का नामक राक्षसी विश्वामित्र के तपो भूमि बक्सर (बिहार ) में निवास करने लगी थी। तथा अपनी राक्षसी ने के साथ मिलकर बक्सर वासियों को कष्ट देने लग गई थी, वहां के लोगो पर अत्याचार करने लग गई थी। लोगों को कष्ट एवं अत्याचार का शिकार बनते देख महर्षि विश्वामित्र को ताड़का का मौत सोचना पड़ा। महर्षि विश्वामित्र के निर्देश के अनुसार वही पर भगवान राम ने ताड़का को मार गिराया। एवं ताड़का का पुत्र मारीच वहां से अपनी प्राण बचाकर भाग गया। इस तरह से तड़का वध हुआ था।

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भगवान राम की विवाह

ताड़का के वध करने के बाद महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को मिथिला (बिहार) लेकर गए। वहां मिथिला में महाराज जनक अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक बहुत बड़े स्वयंबर का आयोजन किया था। स्वयंबर में हिस्सा लेने की लिए बड़े – बड़े शक्तिशाली राजा भी मिथिला में आए थे। वहां सभा में रखें महान शिव धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाना था।

जो उस शिव धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाता उस से माता सीता का विवाह हो जाता हैं। सारे राजाओं ने धनुष को उठाने का प्रयत्न किया पर किसी से भी ओ धनुष हिला तक नहीं प्रत्यंचा चढ़ाना तो बहुत दूर की बात हैं। अब शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढाने की बारी भगवान राम की थी।




जैसे भगवान राम शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की वैसे ही वैसे ही शिव धनुष टूट गया। इस धनुष को टूटने से इतनी अधिक ध्वनि उत्पन हुई कि वहां स्वयं महर्षि परशुराम आ पहुंचे। और अपने भगवान शिव का धनुष टूटने पर रोष प्रकट किया। महर्षि परशुराम को जाने के बाद भगवान राम का विवाह माता सीता से हो गया।

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