महाभारत में हनुमान जी भी लड़े थे ? | Bhagavad Gita 1.20 | BG 1.20 |
महाभारत में हनुमान जी भी लड़े थे ? | Bhagavad Gita 1.20 | BG 1.20 |
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BG 1.20

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥ 20 ॥

शब्दार्थ

अथ – तत्पश्चात्; व्यवस्थितान् – स्थित; दृष्ट्वा – देखकर; धार्तराष्ट्रान्– धृतराष्ट्र के पुत्रों को; कपि-ध्वजः – जिसकी पताका पर हनुमान अंकित हैं; प्रवृत्ते – कटिबद्ध; शस्त्र-सम्पाते – बाण चलाने के लिए; धनुः– धनुष; उद्यम्य ग्रहण करके, उठाकर; पाण्डवः – पाण्डुपुत्र (अर्जुन) ने; हृषीकेशम् – भगवान् कृष्ण से; तदा– उस समय; वाक्यम्– वचन; इदम् – ये; आह-कहे; मही-पते– हे राजा।

अनुवाद

उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ। हे राजन् ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे।

महाभारत में हनुमान जी भी लड़े थे ? | Bhagavad Gita 1.20 | BG 1.20 |

अभिप्राय

अब दोनों तरफ शंखनाद हो चूका हैं जैसे मैच में टॉस होता हैं। अब यहाँ भी टॉस हो चूका हैं, दोनों टीम आ गई। अब सिर्फ धनुष उठाना हैं युद्ध प्रारम्भ। अभी हम इस श्लोक में क्या देखते हैं कपि-ध्वजः कपि मतलब हनुमान जी का नाम हैं कपि। अर्जुन के रथ पर हनुमान जी का ध्वजा हैं। मतलब झंडे पर हनुमान जी का तस्वीर छपा हुआ हैं। वैसे कृष्ण के रथ के ध्वजा में गरुड़ जी होते हैं। क्योंकि की कृष्ण अपना रथ नहीं लाए वें अर्जुन के रथ पर सारथी बने हुए हैं। चलिए अब थोड़ा इतिहास जान लेते हैं –

हनुमान जी ने सहायता की थी श्रीराम की। जब राम – रावण का युद्ध हुआ तब हनुमान जी ने बहुत बड़ा भूमिका निभाया था। माता सीता को ढूंढना। फिर लंका को आग लगाना। रावण को थोड़ा भय तो हुआ था। जब राम जी पूरी आर्मी आ रही थी तब उसने अपने बालकनी से देखा राम और लक्षमण आ रहे लेकिन उनके साथ हनुमान जी को देख कर रावण घबड़ा गया। जब एक वानर ने मेरी ऐसी हालत की थी ये तो पूरी वानर सेना हैं। तो रावण को वध करने में और माता सीता को वापस लाने में हनुमान जी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए थे।

और यहाँ पर वही राम वही कृष्ण हैं और यहाँ हनुमान जी भी आ गए। और अपने प्रभु राम को कभी अकेले नहीं छोड़ सकते और वह भी किसी युद्ध के मैदान में बिलकुल भी नहीं। क्योंकि जहाँ राम (कृष्ण) हैं वही हनुमान हैं। तथा जब हनुमान जी आ गए पांडव के तरफ तो इससे क्या पता चलता हैं कि युद्ध पांडव ही जीतेंगे। पहले तो कृष्ण स्वयं हैं यहाँ पर जो अर्जुन को दिशा – निर्देश देंगे कि कहाँ जाना हैं किसको मरना हैं किसको छोड़ना हैं क्या करना हैं और क्या नहीं करना हैं। अर्जुन भगवान का भक्त हैं और हनुमान जी भी आ गए।

एक बार द्रोपदी ने भीम से कहाँ कि आप जाइए और ऊपर हिमालय में कमल का पुष्प ले कर आइए आरती के लिए। भीम वही पुष्प लेने जा रहे थे कि उन्होंने वहां पर देखा एक बढ़ी पूछ किसी की दिख रही हैं।

एक बड़ा वृद्ध वानर सोया हुआ हैं। भीम ने कहाँ – अरे भईया आप अपना पूछ हटा लीजिए और मुझे जाने दीजिए (भीम भी भगवान का भक्त था ऐसे थोड़ी किसी का अनादर करेगा) वानर ने कहाँ – तुमको हटाना हैं हटाओ ऊपर से लाँघ कर जाना हैं जाओ। यह हमारी सभ्यता रही हैं कि किसी के ऊपर से नहीं जा सकते। भीम ने फिर बोला हटा लीजिए वानर ने फिर कहाँ मैं नहीं हटा सकता मैं थक चूका हूँ।

यदि देखा जाये तो पूंछ हटाने में कितना समय लगता हैं लेकिन यहाँ पर भगवान की कुछ लीला हैं यहाँ दो भक्तों को मिलवा रहे हैं। फिर भीम ने बोला जब आप अपनी पूंछ नहीं हटा सकते तो मैं ही हटा देता हूँ, एक वृद्ध वानर का पूंछ क्या हैं मेरे लिए दस हजार हाथी का बल रखता हूँ मैं। जैसे उन्होंने एक हाथ से हटाने की कोशिश की हटा ही नहीं।

फिर दोनों हाथों से कोशिश की फिर भी पूंछ हिला तक नहीं। भीम ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी पूंछ तो छोड़िए पूंछ का एक बाल भी नहीं हिला पाए। तो भीम समझ गए कि ये कोई साधारण प्राणी नहीं हैं। भीम ने बड़े आदर के साथ पूंछ आप कौन हैं? तो वानर ने कहाँ मैं हनुमान हूँ। भीम तुमभी पवन पुत्र हो मैं भी पवन पुत्र हूँ ऐसे में तुम मेरे भाई हो। तो भीम यह सुनते वही नतमस्तक हो गया।

तो फिर भीम और हनुमान जी कि वार्ता हुई। दोनों पवन पुत्र हैं। भीम ने कहाँ प्रभु आप ने लंका में रावण को भी धूल चटा दी थी। भगवान राम की सहायक बने। हमारा भी युद्ध होगा अभी हम वनवास में हैं। जब हमारा युद्ध कौरवों के साथ हो तब आप हमारे साथ रहिएगा प्रभु। हनुमान जी बोले ठीक हैं मैं तुम्हारे छोटे भाई अर्जुन के रथ के ध्वजा पर आ जाऊंगा। जब तुम शंखनाद करोगे जोड़ से चिल्लाओगे तब मैं भी करूँगा।

जब हनुमान जी आवाज करते थे सब घबड़ा जाते थे कौन आवाज कर रहा हैं कहाँ से आवाज कर रहा हैं। तो कृष्ण भी हैं हनुमान भी अर्जुन भगवान के शुद्ध भक्त हैं ये जो रथ हैं उसे अग्नि देव ने दिया हैं। ओ कैसे हारेंगे भला। कुछ हो न हो कृष्ण हैं जीत जायेंगे। क्या कर लिया हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद का। क्या कर लिया रावण सीता का। क्या कर लिया कंस ने देवकी और वसुदेव का।

भगवान के भक्तों को कुछ नहीं कर सकते। इसीलिए बुद्धिमानी किस में हैं भगवान के भक्त बनने में। अब अगले श्लोक में अर्जुन भगवान से कुछ कहता हैं।

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