दो देश लड़ते हैं तो पिसता कौन है ? | Bhagavad Gita 1.16-18 | BG 1.16-17-18 |
दो देश लड़ते हैं तो पिसता कौन है   Bhagavad Gita 1.16-18  BG 1.16-17-18
दो देश लड़ते हैं तो पिसता कौन है ? | Bhagavad Gita 1.16-18 | BG 1.16-17-18 |

BG 1.16-17-18

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ 16 ॥
काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथ: ।
धृष्टद्युम्न‍ो विराटश्च सात्यकिश्‍चापराजित: ॥ 17 ॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश: पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहु: शङ्खान्दध्मु: पृथक्पृथक् ॥ 18॥

शब्दार्थ

अनन्त-विजयम् – अनन्त विजय नाम का शंख; राजा-राजा; कुन्ती-पुत्रः– कुन्ती के पुत्र; युधिष्ठिरः– युधिष्ठिर; नकुलः– नकुल; सहदेवः सहदेव ने; – तथा; सुघोष- मणिपुष्पकौ – सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंख; काश्यः काशी (वाराणसी) के राजा ने; -तथा; परम-इषु-आसः– महान धनुर्धरः शिखण्डी – शिखण्डी ने; -भी; महा- रथः– हजारों से अकेले लड़ने वाले; धृष्टद्युम्नः धृष्टद्युम्न (राजा द्रुपद के पुत्र) ने; विराटः– विराट (राजा जिसने पाण्डवों को उनके अज्ञात वास के समय शरण दी) ने;

-भी; सात्यकिः – सात्यकि (युयुधान, श्रीकृष्ण के साथी) ने; -तथा; अपराजितः – कभी न जीता जाने वाला, सदा विजयी; द्रुपदः – द्रुपद, पंचाल के राजा ने; द्रौपदेयाः– द्रौपदी के पुत्रों ने; -भी; सर्वशः– सभी; पृथिवी-पते– हे राजा; सौभद्रः– सुभद्रापुत्र अभिमन्यु ने; -भी; महा-बाहुः – विशाल भुजाओं वाला; शङ्खान् – शंख; दध्मुः -बजाए; पृथक्- पृथक्– अलग-अलग।

अनुवाद

हे राजन् ! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनंतविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये। महान धनुर्धर काशीराज, परम योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सबों ने अपने-अपने शंख बजाये।

दो देश लड़ते हैं तो पिसता कौन है ? | Bhagavad Gita 1.16-18 | BG 1.16-17-18 |

अभिप्राय

सबसे पहले कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख बजाया फिर अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाय फिर पौण्ड्र नामक शंक भीम ने बजाया । युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख बजाया फिर नकुल ने सुघोष और सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख बजाया। संजय इन श्लोकों के द्वारा धृतराष्ट्रा को कह रहे हैं कि हे राजन, आप आशा छोड़ दीजिए, आपके पुत्र मृत्यु को प्राप्त होंगे वे सब हारेंगे। संजय केवल शंखनाद सुनकर कह रहे हैं। क्योंकि हमने पहले भी चर्चा किया कि धर्म राज युधिष्ठिर यहाँ पर हैं स्वयं भगवान यहाँ पर हैं तो कोई सवाल ही नहीं उठता कि कोई और युद्ध जीत जाए।

संजय एक बात और बता रहे हैं कि शंखनाद दोनों तरफ से हो रही हैं। दोनों पार्टी (दल) उत्साह के साथ युद्ध के लिए आ रही हैं और दोनों पक्षों से बड़े – बड़े योद्धा मारे जायेगे। भीष्मदेव से लेकर अभिमन्यु तक सभी मारे जायेंगे। अभिमन्यु उम्र में सबसे छोटे हैं। उनकी उम्र केवल 14 वर्ष हैं। तो संजय कह रहे हैं कि इस युद्ध में हानि तो होगा ही। लेकिन धर्म को फिर से स्थापित करने के लिए यह आवश्यक हैं।

जैसे हमारे शरीर से बीमारी को निकलने के लिए कभी – कभी ऑपरेशन करना पड़ता हैं तो ठीक इसी प्रकार धर्म को फिर से स्थापित करने के लिए यह भगवन का ऑपरेशन हैं। तो हम यह देख सकते हैं कि संजय पहले से ही भविष्यवाणी दी कि एक तो धर्मराज युधिष्ठिर की पार्टी जीतेगी और कौरव सारे मृत्यु को प्राप्त होंगे क्योंकि वो सारे अधर्म के पथिक बनके अधर्म का साथ दे रहे हैं।

तो हम हमारे जीवन में देखते हैं कि हम जीवन भर अधर्म के साथ देते हैं और अंत में जब सद्गति को प्राप्त करेंगे तो यह नहीं होने वाला। एक सिस्टम (प्रणाली) हैं, भगवान ने एक सिस्टम बनाया हैं तो उस सिस्टम के अनुसार चलेंगे तो रिजल्ट मिलेगा।

जैसे आप मुंबई से दिल्ली जा रहे हैं, आपने ट्रैन का टिकट ख़रीदा और ट्रैन में बैठ गए और दिल्ली उतर गए। क्यों? क्योंकि आपने दिल्ली के ट्रैन का टिकट ख़रीदा और दिल्ली उतर गए। हमें दिल्ली जाना था तो हमने दिल्ली वाली ट्रैन का टिकट ख़रीदा और दिल्ली उतर गए। अब आप चेन्नई का टिकट खरीदेंगे और कोलकाता वाली ट्रैन में बैठेंगे और सोचेंगे कि जब मैं रात को सो जाऊ और जब सुबह उठु तो दिल्ली पहुँच चुके हो – ऐसा नहीं होगा। तो जो धर्म के मार्ग पर चलता हैं उसको सद्गति मिलती हैं और जो अधर्म के मार्ग पर चलता हैं उसे कौरवों की तरह दुर्गति मिलती हैं – यह सभी को समझना चाहिए।

तो सीखिए भगवद्गीता के श्लोकों से कि हम अपने डेली लाइफ में क्या कर रहे हैं। हम धर्म का पालन कर रहे हैं या अधर्म के पथिक बन चुके हैं। अगर सद्गति चाहिए (पांडवों जैसे) तो अभी इसी वक्त धर्म के पथिक बन जाइए। अधर्म के मार्ग पर चलने वालों को दुर्गति (कौरवों जैसे ) मिलती हैं। अगर धर्म आपके पक्ष में हैं तो सदा विजय आपकी ही होगी चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों न हो।

युद्ध बहुत नुकसानदायक होता हैं। दोनों तरफ बहुत नुकसान होता हैं। पांडव धर्म के पक्ष में थे फिर भी अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु और पांचाली के पाँचो पुत्र तथा भीम का पुत्र घटोत्कच भी मारा गया। यह कहने का तातपर्य यह हैं कि चाहे आप धर्म के पक्ष में हो यह अधर्म के पक्ष में क्षति दोनों तरफ होती हैं।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *