BG 1.15
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥ 15 ॥
शब्दार्थ
पाञ्चजन्यम् – पाञ्चजन्य नाम; हृषीक ईश: – हृषीकेश (कृष्ण जो भक्तों की इन्द्रियों को निर्देश करते हैं) ने; देवदत्तम् – देवदत्त नामक शंख; धनम् जयः– धनञ्जय (अर्जुन, धन को जीतने वाला) ने; पौण्ड्रम्-पौण्ड्र नामक शंख; दध्मौ बजाया; महा-शङ्खम् – भीषण शंख; भीम-कर्मा – अतिमानवीय कर्म करने वाले; वृक उदरः (अतिभोजी) भीम ने।
अनुवाद
भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अतिमानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक भयंकर शंख बजाया।
अभिप्राय
इस श्लोक में तीन personalities का वर्णन हैं 1. भगवान हृषीकेश, उनका शंख हैं पाञ्चजन्य 2. अर्जुन का शंख हैं देवदत्त तथा 3. भीम का शंख हैं पौण्ड्र । तो हम यहाँ सबसे पहले भगवान के बारे में जानेंगे कि क्यों उन्हे हृषीकेश बोला गया । हृषीक का मतलब होता हैं इंद्रियाँ । हमारे जो भी इंद्रियाँ ये हृषीक हैं । ऐसे में हृषीक ईश: का मतलब होता हैं इंद्रियों के स्वामी ।
इस से क्या पता चलता हैं कि हमारे इंद्रियों के असली स्वामी श्री कृष्ण हैं इसीलिय उन्हे हृषीकेश कहाँ जा रहा हैं । इसीलिय कहाँ जाता हैं कि अपने इंद्रियों को भगवान श्री कृष्ण के सेवा में लगा दीजिए । जब हम अपने इंद्रियों को भगवान हृषीकेश के सेवा में लगा देते हैं तो इसी को भक्ति कहाँ जाता हैं । इससे हमे यह पता चलता हैं कि कितना सरल है भक्ति करना । आपके पास जो स्किल्स हैं जो टैलेंट हैं जो इंद्रियाँ भगवान ने दी हैं उनको भगवान के सेवा में लगा लगाना हैं।
हृषीकेश क्यों बोल रहे हैं यहाँ पर इसका एक और कारण हैं – यहाँ पर अर्जुन ने अपने जीवन के बाग डोर श्री कृष्ण (पार्थसारथी) को समर्पित कर दिया । ठीक अर्जुन के तरह हमे भी चाहिए कि अपने जीवन के बागडोर भगवान को समर्पण करके भगवान और भगवान के शुद्ध भक्तो के निर्देश अनुसार चलना चाहिए । इसीलिय कृष्ण को हृषीकेश कहाँ जा रहा हैं ।
फिर यहाँ अर्जुन का नाम हैं धनञ्जय जब युधिष्टिर महाराज को राजसूय यज्ञ करना था। एक तो पूरे संसार में आपकी विजय होनी चाहिए और यज्ञ के लिए धन भी चाहिए तो अर्जुन जाके उत्तर दिशा से धन लेके आए थे इसीलिए इनका नाम धनञ्जय पड़ा ।
यहाँ भीम को वृक उदरः बोला जा रहा हैं क्योंकि भीम खाता बहुत हैं, अतिभोजी मतलब बहुत सारा भोजन करने वाला । इसीलिए भीम को यहाँ अतिभोजी भी कहाँ जा रहा हैं । लेकिन भीम कुंभकर्ण के तरह खाके सोता नहीं । वह काम भी वैसा करता हैं जो हर किसी के लिए असंभव हैं ।
जब दुर्योधन ने लाक्षागृह में आग लगवा दिया था तब भीम ने अपने चारों भाई और माता कुंती को अपने ऊपर बैठाकर तेजी से भाग रहा था । भीम ने हिडिंबासुर जैसे अशुरों का वध भी किया हैं । ऐसा नहीं हैं कि भीम सिर्फ खा पीकर आराम से कुंभकर्ण के तरह सो रहा हैं नहीं ! भीम काम भी कर रहा हैं, तो यह हैं भीम का power (शक्ति)।
अपनी Skills को कहाँ लगाएँ ? |
तो यहाँ पर हमें देखने को मिलता हैं कि भीम के पास जो स्किल्स था, अर्जुन के पास जो स्किल्स था भगवान हृषीकेश के सेवा में लगा दिया । ठीक भीम और अर्जुन की तरह हमे अपने स्किल्स को भगवान के सेवा में लगा देना चाहिए। इसी को भक्ति कहते हैं ।