आज हम उस स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जानने वाले हैं जिसे लोग नहीं जानते हैं , एक तरह से बोले तो लोग उन्हे लगभग भूल ही चुके हैं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ खुदीराम बोस की। जिन्होंने देश के आज़ादी के लिए मात्र 18 साल के उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए। आज आपको इस लेख में खुदीराम बोस के जीवन से जुड़ी बहुत जानकारी मिलने वाली हैं , तो आप इस लेख को पूरा जरूर पढियेगा।
Khudiram Bose Biography hindi
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले बहुवैनी नामक गावं में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के घर हुआ था। इनके माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। खुदीराम बोस के सर से माता – पिता का का साया बहुत जल्दी ही उतर गया।
इसीलिए इनका पालन – पोषण इनकी बड़ी बहन ने की थी। खुदीराम बोस के अंदर देशभगति कूट – कूट कर भरा हुआ था। खुदीराम बोस के मन में देश आज़ाद कराने की ऐसी लगन थी कि उन्होंने नौवीं कक्षा तक पढाई की। इसके बाद इन्होंने पढाई छोर दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।
भारत पर अत्यचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश को साम्राज्य को ध्वस्त करने का संकल्प लेकर अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और मात्र 19 वर्ष में हाथ में भगवत गीता लेकर हँसते – हसँते फांसी के फंदे पर चढ़ कर वीरता और साहस का परिचय देते हुए इतिहस में नाम को दर्ज करावा लिया।
खुदीराम बोस को फांसी क्यों दी गई थी
खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन 1905 सत्यन बोस के नेतृत्व में शुरू किया। मात्र 16 साल के उम्र में खुदीराम बोस पुलिस स्टेशन के पास बम रखा और सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया। (आज के लड़के 16 साल के उम्र में घर में बैठ कर PUBG और BGMI जैसे गेम खेलते हैं। ओ भी एक 16 साल की जवानी थी जो कभी भी किसी भी वक्त अपने देश के आज़ादी के लिए अंग्रेजो से भीड़ जाया करते थे। )
खुदीराम बोस रिवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल हुए और लोगों में वन्देमातरम के पर्चे बाटने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया। पुलिस हमेशा इनके पीछे ही पड़ीं रहती थी। 28 फरवरी, सन 1906 में खुदीराम बोस को पुलिस ने दूसरी बार गिरफदार कर लिया। गिरफ्दारी का कारण यह था कि खुदीराम बोस सोनार बंगला नामक इश्तहार(पोस्टर ) बांटे हुए पकड़े गए थे , पर पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे। इस मामलें में बोस पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। और उन पर अभियोग (indictment) चलाया गया। लेकिन कोई गवाही न मिलने के कारण खुदीराम को निर्दोष शाबित कर के छोड़ दिया गया।
तीसरी बार 16 मई को पुलिस खुदीराम बोस को फिर से गिरफ्दार किया , परन्तु कम आयु होने के कारण उन्हें भी से छोड़ दिया गया। 06 दिसंबर 1907 को खुदीराम बोस नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रैन पर है,हमला कर दिया। 1908 में खुदीराम बोस ने दो अंग्रेज़ अधिकारीयों पर बम से हमला किया लेकिन संयोग से ओ दोनों अधिकारी भी बच गए।
1905 में जब अंग्रेजो ने बंगला विभाजन किया तब लोग ने काफ़ी ज्यादा इसका विरोध किया था। विरोध करने के कारण कलकत्ता के तत्कालीन मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड लोग को क्रूर दंड दिया। किंग्जफोर्ड खास कर क्रांतिकारियों को पकड़ काफ़ी भयानक दंड देता था। अंग्रेजी हुकूमत किंग्जफोर्ड के काम से खुश होकर उसे मुजफ़्फ़रपुर जिले का सत्र न्यायधीश बना दिया।
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उस समय देश में जितने भी क्रांतिकारी थे , देश के आज़ादी के लिए लड़ रहे थे उनसब ने मिलकर किंग्जफोर्ड को मारने की एक योजना बनाई। और इस काम को अंजाम देने के लिए चुना गया खुदीराम बोस और प्रफ्फुल्ल कुमार चाकी को।
30 अप्रैल 1908 बोस और चाकी मुजफ्फरपुर पहुंच गए और किंग्जफोर्ड के बंगले के बहार खड़े होकर उसका इंतज़ार करने लगे। इंतजार करते – करते अँधेरा हो गया। उस के बंगले के पास बग्गी खड़ी थी। ख़ुदीराम बोस को शक हुआ कि कहीं इस बग्गी में किंग्जफोर्ड तो नहीं जिसका हमलोग इंतजार कर रहे थे और उन्होंने बम उस बग्गी पर फेक दिया।
लेकिन उस किंग्जफोर्ड नहीं बल्कि दो यूरोपियन महिला थी जिनकी मौत हो गई। बम फटने के बाद वहाँ अफरा – तफरी का माहौल हो गया। बोस और चाकी वहां से नगे पावा भागे। दोनों भाग – भाग कर थक गए। दोनों भूख और प्यास से तड़प रहे थे।
बोस और चाकी वैनी रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर एक चाय वाले से पानी मांगी , लेकिन वहां मौजूद पुलिस वालों उन दोनों पर शक हो गया। और बहुत मशकत के बाद खुदीराम बोस को गिरफ़दार कर लिया गया। 1 मई को उन्हें स्टेशन से मुजफ्फरपुर लाया गया।
उधर प्रफुल्ल चाकी भी भाग – भाग कर भूख और प्यास से तड़प रहे थे। 1 मई को ही त्रिगुणाचारण नामक ब्रिटिश सरकार में कार्यरत एक व्यक्ति ने उनकी मदद की और रात को ट्रैन में बैठाया। रेल यात्रा करते समय ब्रिटिश पुलिस में कार्यरत एक सब इंस्पेस्क्टर को उनपर शक हो गया।
और उसने मुजफ्फरपुर पुलिस को इस बात की जानकारी दे दी। जब चाकी हावड़ा के लिए ट्रैन बदलने के लिए मोकामाघाट स्टेशन पर उतरे तो इनके इंतजार में पहले से ही वहां मुजफ़्फ़रपुर पुलिस मौजूद थी। चाकी ने कहाँ ” अंग्रेजों के हाथों मरने से अच्छा हैं कि मैं खुद मर जाऊ ” और उन्होंने बंदूक निकली और खुद को मार ली और शहीद हो गए। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो ये हैं कि समय में इनके बारे में कोई नहीं जनता हैं।
खुदीराम बोस को पकड़ कर उनपर मुक़दमा चलाया गया और फिर फांसी की सजा सुना दी गई। 11 अगस्त 1908 को उनको फांसी पे लटका दिया गया। उस समय उनकी उम्र मात्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन था।
खुदीराम बोस इतने निडर और साहसी थे कि हाथ में भागवत गीता लेकर फांसी पर चढ़ गए। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो ये हैं कि आज के समय में बहुत ही कम लोग खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी जैसे वीरों जानते होंगे एवं आज का जनरेशन इनके नाम से तो दूर दूर तक अनभिज्ञ हैं। लेकिन जब तक Knowledge Folk हैं तब तक ऐसे महान, शुर वीर योद्धाओं के वीर गाथ को भुलने नहीं देगा।
FAQ
खुदीराम बोस को फांसी क्यों दी गई थी
30 अप्रैल 1908 बोस और चाकी मुजफ्फरपुर पहुंच गए और किंग्जफोर्ड के बंगले के बहार खड़े होकर उसका इंतज़ार करने लगे। इंतजार करते – करते अँधेरा हो गया। उस के बंगले के पास बग्गी खड़ी थी। ख़ुदीराम बोस को शक हुआ कि कहीं इस बग्गी में किंग्जफोर्ड तो नहीं जिसका हमलोग इंतजार कर रहे थे और उन्होंने बम उस बग्गी पर फेक दिया। लेकिन उस किंग्जफोर्ड नहीं बल्कि दो यूरोपियन महिला थी जिनकी मौत हो गई। इसी कारण खुदीराम बोस फांसी की सजा सुनाई गई थी। आपको बता दे की किंग्जफोर्ड मुजफ्फरपुर जिले का मजिस्ट्रेट था जो बहुत ही क्रूर था ओ क्रातिकारियों को चुन चुन कर मरता था।
Q. Khudiram Bose fasi date
A. 11 अगस्त 1908
Q. Khudiram Bose father name
A. त्रैलोक्यनाथ बोस (Trailokyanath Bose)
Q. Khudiram Bose mother name
A. लक्ष्मीप्रिया देवी(Lakshmipriya Devi)
Q. Khudiram Bose birthplace
A. मिदनापुर जिला (Midnapore district)
Q. खुदीराम बोस को फांसी कब हुई
A. 11 अगस्त 1908
Q. खुदीराम बोस बलिदान दिवस
A. 11 अगस्त 1908
Q. खुदीराम बोस जन्म दिवस
A. 3 दिसंबर 1889