आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के 14वे अध्याय के पहले श्लोक में धरती पर मौजूद तीन बहुमूल्य रत्नो के बारे में बात की हैं।

इन 3 सुख के बिना जीवन का कल्पना असंभव हैं। तो चलिए उन तीन सुखों के बारे में जानते हैं जिनके बारे स्वयं आचार्य चाणक्य ने वर्णन किया हैं।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हिरा - मोती, पन्ना, सोना - चाँदी एक पत्थर के टुकड़े के सामान हैं। 

पहला सुख।

जो व्यक्ति इसे रत्न मानता हैं वह इसे पाने के चाहत में अपना असली सुख खो बैठता हैं। असल जिंदगी में पहला  सुख हैं अन्न और जल हैं ।

जो थोड़ा पैसा कमाने के बाद भी ख़ुशी से दो वक्त की रोटी और जलपान कर सकते हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार इस से बड़ा और कोई सुख नहीं।

दूसरा सुख।

आचार्य चाणक्य के अनुसार जिनके वाणी में मधुरता होती हैं तो ऐसे लोग अपने शत्रु को अपना मित्र बना लेते हैं।

सोच समझकर और तोलमोल कर बोलने वाले व्यक्ति की प्रसंशा हर जगह होती हैं।

वही कड़वे वचन बोलने वाले से हर व्यक्ति दुरी बनाकर ही रखना चाहता हैं।

मधुरता एक ऐसा रत्न हैं जो न केवल इंसान के छवि में चार चाँद लगाता हैं बल्कि उसके मान सम्मान को भी बढ़ा देता हैं।

तीसरा सुख।

आचार्य कहते हैं कि मन की सुख ही सबसे बड़ा धन हैं।

 क्योंकि जब तक इंसान का मन पूरी तरह से शांत नहीं रहेगा तब तक वह अपने जीवन में सुख नहीं पा सकता हैं। 

आज के समय में लोग धन के लालच में इस असली सुख से कोसों दूर हो चुके हैं।

 जिसके कारण शरीर में कई तरह की बीमारियां और रिश्तों में खटास आने लगती हैं। इसीलिए सबसे पहले मन का सुख महत्वपूर्ण हैं। 

चाणक्य नीति: ऐसे लोगों के पास कभी भी नहीं ठहरता धन।