आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और विपदाएं अपराध रूपी वृक्ष के फल हैं।

इन फलों का उपयोग मनुष्य को करना ही पड़ता हैं।

घर तो गृहणी के कारण ही घर कहलाता हैं। बिना गृहणी के घर किसी सुनसान जंगल के सामान होता हैं। 

 यदि बात सच हो और उसे सुनने पर किसी को कष्ट होता हो तो उस सच बात को नहीं कहना चाहिए।

यदि कोई आदमी कोई बात किसी ऐसी जगह कहता हो जहाँ नहीं कही जानी चाहिए

या ऐसे समय पर कहता जब ओ बात नहीं कही जानी चाहिए। कोई ऐसा बात कहता हैं जो अशुभ हैं

या किसी को प्रिय नहीं लगती या जिस से उसका ही ओछापन प्रकट होता हैं 

या जिसे कहने का कोई कारण नहीं हैं तो वह बात, बात नहीं रहती उसे विष समझना चाहिए। 

कहा गया हैं कि यदि कोई अहंकार के कारण क्रोध से लोभ से या डर से गलत फैसला लेता हैं तो उसे नरक को जाना पड़ता हैं। 

चाणक्य नीति: स्त्री हो या पुरुष सोए जोश  को जगा देगी ये बात