क्या आप नींद पर काबू पाना चाहते हैं ? | Bhagavad Gita 1.24 | BG 1.24 |

क्या आप नींद पर काबू पाना चाहते हैं ? | Bhagavad Gita 1.24 | BG 1.24 |

BG 1.24 सञ्जय उवाचएवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ 24 ॥ शब्दार्थ सञ्जयः उवाच – संजय ने कहा; एवम् – इस प्रकार; उक्तः कहे गये; हृषीकेशः – भगवान् कृष्ण ने; गुडाकेशेन – अर्जुन द्वारा; भारत– हे भरत के वंशज; सेनयोः– सेनाओं के; उभयोः – दोनों; मध्ये: मध्य में; स्थापयित्वा – खड़ा करके; रथ-उत्तमम्…

मैं इतना परेशान क्यों रहता हूँ? | Bhagavad Gita 1.23 | BG 1.23 |

मैं इतना परेशान क्यों रहता हूँ? | Bhagavad Gita 1.23 | BG 1.23 |

BG 1.23 योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ 23 ॥ शब्दार्थ योत्स्यमानान् – युद्ध करने वालों को; अवेक्षे– देखें; अहम् – मैं; ये-जो; एते-वे; अत्र – यहाँ; समागताः– एकत्र; धार्तराष्ट्रस्य – धृतराष्ट्र के पुत्र की; दुर्बुद्धेः– दुर्बुद्धिः युद्धे– युद्ध में; प्रिय– मंगल, भला; चिकीर्षवः – चाहने वाले। अनुवाद मुझे उन लोगों को देखने…

मालिक को नौकर का ड्राइवर बनते देखा है कभी ? | Bhagavad Gita 1.21-22 | BG 1.21 -22 |

मालिक को नौकर का ड्राइवर बनते देखा है कभी ? | Bhagavad Gita 1.21-22 | BG 1.21 -22 |

BG 1.21 -22 अर्जुन उवाचसेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्‍धुकामानवस्थितान् ॥ २१ ॥कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्‍रणसमुद्यमे ॥ २२ ॥ शब्दार्थ अर्जुनः उवाच-अर्जुन ने कहा; सेनयोः सेनाओं के; उभयोः – दोनों मध्ये बीच में, रथम् – रथ को; स्थापय– कृपया खड़ा करें; मे– मेरे; अच्युत– हे अच्युत; यावत्-जब तक; एतान् – इन सब; निरीक्षे– देख सकूँ; अहम्…

महाभारत में हनुमान जी भी लड़े थे ? | Bhagavad Gita 1.20 | BG 1.20 |

महाभारत में हनुमान जी भी लड़े थे ? | Bhagavad Gita 1.20 | BG 1.20 |

BG 1.20 अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः ।प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥ 20 ॥ शब्दार्थ अथ – तत्पश्चात्; व्यवस्थितान् – स्थित; दृष्ट्वा – देखकर; धार्तराष्ट्रान्– धृतराष्ट्र के पुत्रों को; कपि-ध्वजः – जिसकी पताका पर हनुमान अंकित हैं; प्रवृत्ते – कटिबद्ध; शस्त्र-सम्पाते – बाण चलाने के लिए; धनुः– धनुष; उद्यम्य ग्रहण करके, उठाकर; पाण्डवः…

अब डर किस बात का? | Bhagavad Gita 1.19 | BG 1.19 |

अब डर किस बात का? | Bhagavad Gita 1.19 | BG 1.19 |

BG 1.19 स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् ।नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥ 19 ॥ शब्दार्थ सः-उस; घोषः – शब्द ने; धार्तराष्ट्राणाम् – धृतराष्ट्र के पुत्रों के; हृदयानि – हृदयों को; व्यदारयत्– विदीर्ण कर दिया; नभः– आकाश; च– भी; पृथिवीम्– पृथ्वीतल को; च– भी; एव-निश्चय ही; तुमुलः– कोलाहलपूर्ण; अभ्यनुनादयन् – प्रतिध्वनित करता, शब्दायमान करता। अनुवाद इन…

दो देश लड़ते हैं तो पिसता कौन है ? | Bhagavad Gita 1.16-18 | BG 1.16-17-18 |

दो देश लड़ते हैं तो पिसता कौन है ? | Bhagavad Gita 1.16-18 | BG 1.16-17-18 |

BG 1.16-17-18 अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ 16 ॥काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथ: ।धृष्टद्युम्न‍ो विराटश्च सात्यकिश्‍चापराजित: ॥ 17 ॥द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश: पृथिवीपते ।सौभद्रश्च महाबाहु: शङ्खान्दध्मु: पृथक्पृथक् ॥ 18॥ शब्दार्थ अनन्त-विजयम् – अनन्त विजय नाम का शंख; राजा-राजा; कुन्ती-पुत्रः– कुन्ती के पुत्र; युधिष्ठिरः– युधिष्ठिर; नकुलः– नकुल; सहदेवः सहदेव ने; च– तथा; सुघोष- मणिपुष्पकौ…

अपनी Skills को कहाँ लगाएँ ? | Bhagavad Gita 1.15 | BG 1.15 |

अपनी Skills को कहाँ लगाएँ ? | Bhagavad Gita 1.15 | BG 1.15 |

BG 1.15 पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥ 15 ॥ शब्दार्थ पाञ्चजन्यम् – पाञ्चजन्य नाम; हृषीक ईश: – हृषीकेश (कृष्ण जो भक्तों की इन्द्रियों को निर्देश करते हैं) ने; देवदत्तम् – देवदत्त नामक शंख; धनम् जयः– धनञ्जय (अर्जुन, धन को जीतने वाला) ने; पौण्ड्रम्-पौण्ड्र नामक शंख; दध्मौ बजाया; महा-शङ्खम् – भीषण…

लक्ष्मी घर में कैसे आएगी ? | Bhagavad Gita 1.14 | BG 1.14 ।

लक्ष्मी घर में कैसे आएगी ? | Bhagavad Gita 1.14 | BG 1.14 ।

BG 1.14 ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः ॥ 14 ॥ शब्दार्थ ततः – तत्पश्चात्; श्वेतैः -श्वेत; हयैः– घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने– रथ में; स्थिती – आसीन; माधवः कृष्ण (लक्ष्मीपति) ने; पाण्डवः अर्जुन (पाण्डुपुत्र) ने; च-तथा; एव-निश्चय ही; दिव्यौ– दिव्य; शङ्खौ– शंख; प्रदध्मतुः – बजाये। अनुवाद…

शंख क्यों बजाते हैं | Bhagavad Gita 1.13 | BG 1.13 |

शंख क्यों बजाते हैं | Bhagavad Gita 1.13 | BG 1.13 |

BG 1.13 ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ 13 ॥ शब्दार्थ ततः – तत्पक्षात्ः शङ्खाः – शंख; च – भी; भेर्यः – बड़े-बड़े ढोल, नगाड़े; च-तथा; पणव-आनक – ढोल तथा मृदंग; गो-मुखाः – श्रृंग; सहसा – अचानक; एव-निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त-एक साथ बजाये गये; सः वह; शब्दः -समवेत स्वर; तुमुलः – कोलाहलपूर्ण; अभवत् –…

सही पार्टी बनाइए | Bhagavad Gita 1.12 | BG 1.12 |

सही पार्टी बनाइए | Bhagavad Gita 1.12 | BG 1.12 |

BG 1.12 तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।सिंहनादं विनद्योच्च‍ैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ॥ 12 ॥ शब्दार्थ तस्य – उसका; सञ्जनयन् – बढ़ाते हुए; हर्षम् – हर्ष; कुरु-वृद्धः– कुरुवंश के वयोवृद्ध (भीष्म); पितामहः – पितामह, बाबा: सिंह-नादम्-सिंह की सी गर्जना; विनद्य– गरज कर; उच्चैः– उच्च स्वर से; शङ्खम्– शंख, दध्मौ– बजाया; प्रताप-वान्– बलशाली। अनुवाद तब कुरुवंश के…