यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनैः । तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥
इस श्लोक का मतलब हैं " जिस प्रकार सोने की परख गर्म करके, घिस - पीटकर तथा काट कर की जाती हैं
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इंसान दूसरों के दुःखी के वक्त में अपना सुख त्याग दे तो समझ ले कि वह अच्छा इंसान हैं।
वही जो व्यक्ति आपके सामने खुद को सबसे अच्छा बताता हैं और समय आने पर सबसे पहले भाग जाता हैं
तो इसका मतलब स्पष्ट हैं कि वह व्यक्ति आपके जीवन में किस काम के लायक नहीं हैं।
किसी भी व्यक्ति के आचरण को देखकर आप बड़े आसानी से पता लगा सकते कि उसका स्वभाव कैसा हैं।
इसके अलावा वह दूसरे किसी व्यक्ति के लिए मन में गलत भावनाएं नहीं रखता हैं।