
Shukrayaan-1 Mission in Hindi: अतंरिक्ष के छिपे रहस्यों के जानने के लिए विश्व के अलग-अलग देशों के बीच होड़ मची हुई है। इसी बीच अंतरिक्ष की रेस में भारत भी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) मंगल, चांद और सूरज के अध्ययन के लिए भेजे गए मिशन की सफलता के बाद अब शुक्र ग्रह के रहस्यों को जानने की तैयारी में जुटी हुई है। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि भारत शुक्र ग्रह (Venus) के वायुमंडल और उसके एसिडिक व्यवहार को जानने के लिए भविष्य में मिशन भेजेगा। तो चलिए दोस्तों जानते हैं कि आखिर क्या है Shukrayaan-1 Mission in Hindi।
Shukrayaan-1 Mission क्या है?
चंद्रयान-3 की सक्सेस ने इसरो को फ्यूचर के लिए गगनयान और शुक्रयान जैसे ज्यादा महत्वाकांक्षी मिशनों की योजना बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। भारतीय स्पेस एजेंसी अब सौर मंडल के सबसे गर्म ग्रह की सतह के नीचे का अध्ययन करने के लिए और शुक्र की कक्षा में जाने के लिए एक स्पेसक्राफ्ट की तैयारी में जुटा हुआ है।
Shukrayaan-1′ संस्कृत में दो शब्दों ‘शुक्र’, जिसका अर्थ है शुक्र, और ‘यान’, जिसका अर्थ है शिल्प, से मिलकर बना है। इस मिशन को Venus Orbiter Mission के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि शुक्रयान-I एक ऑर्बिटर के लिए एक मिशन होगा। एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार और एक जमीन-भेदक रडार इसके दो वर्तमान वैज्ञानिक पेलोड हैं। बता दें कि शुक्र ग्रह पर वायुमंडलीय दबाव धरती से 100 गुना अधिक है।
Shukrayaan-1 Mission का महत्व क्या है?
आपको बता दें कि इससे पता चलता है कि पृथ्वी जैसे ग्रह कैसे विकसित होते हैं और पृथ्वी के आकार के एक्सोप्लैनेट (ग्रह जो हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की झलक दिखाते हैं) पर क्या स्थितियाँ हैं। यह मिशन पृथ्वी के जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रतिरूपण में सहायता करेगा।
Shukrayaan-1 Mission कब लॉन्च किया जाएगा?
बता दें कि अभी इसरो बहुत से मिशन पर काम कर रहा है। कुछ मिशन पूरे हो गए हैं और कुछ अन्य की तैयारी चल रही है। इसरो के अनुसार, Shukrayaan-1 की लाॅन्चिग के लिए दिसंबर 2024 तक का लक्ष्य तय किया गया है। यदि साल 2024 में लॉन्चिंग नहीं हुई तो अगली विंडो साल 2031 तय की गई है। उस वक्त पृथ्वी और शुक्र इतने श्रेणीबद्ध होंगे कि स्पेसक्राफ्ट को कम से कम मात्रा में प्रणोदक (Propellant) का प्रयोग करके ऑर्बिट में स्थापित किया जा सकता है।
Shukrayaan-1 Mission की लॉन्चिंग कहां होगी?
Shukrayaan-1 Mission की लॉन्चिंग का समय और जगह अभी तक निर्धारित नहीं की गई है। साल 2024 के अंत में इसकी लाॅन्चि होने की उम्मीद की जा रही है। आंध्र प्रदेश स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre) से Shukrayaan-1 Mission को लाॅन्च किया जा सकता है। लेकिन इसरो ने इसे लेकर अभी आधिकारिक तौर पर कोई अनाउंसमेंट नहीं किया है।
Shukrayaan-1 Mission को लॉन्च करने के लिए किस स्पेसक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जाएगा?
Shukrayaan-1 Mission को लाॅन्च करने के लिए बहुत चीजें शामिल हैं, जिनकी जानकारी नीचे बताई गई है:
- Shukrayaan-1 Mission इसरो द्वारा शुक्र ग्रह की प्रस्तावित परिक्रमा है।
- बता दें कि अपने वर्तमान विन्यास में ऑर्बिटर का वजन करीब 2,500 Kg है।
- Shukrayaan-1 Mission सिंथेटिक एपर्चर रडार जैसे विज्ञान पेलोड ले जाएगा।
- शुक्र के चारों ओर प्रारंभिक अण्डाकार कक्षा पेरीएप्सिस पर 500 Km और एपोप्सिस पर 60,000 Km होने की संभावना है।
- Shukrayaan-1 Mission को वर्तमान में भारत के जीएसएलवी एमके II (GSLV MK Il) रॉकेट पर लॉन्च किया जाएगा। लेकिन, इसरो ज्यादा शक्तिशाली जीएसएलवी एमके III (GSLV MK Ill) रॉकेट के संभावित प्रयोग का भी मूल्यांकन कर रहा है। यह शुक्रयान को ज्यादा इक्विपमेंट या ईंधन ले जाने की इजाजत देगा।
- ऑर्बिटर, अपने आखिरी विन्यास के मुताबिक, 500 डब्ल्यू उपलब्ध शक्ति के साथ करीब 100 Kg की विज्ञान पेलोड क्षमता होगी।
Shukrayaan-1 Mission का उद्देश्य क्या है?
किसी भी मिशन को लॉन्च करने के बहुत से उद्देश्य होते हैं।
क्योंकि मिशन को लाॅन्च करने में बहुत खर्चा आता है। हालांकि, अब हम आपको इसरो द्वारा बताए गए Shukrayaan-1 Mission के निर्धारित उद्देश्य बताएंगे:
- Shukrayaan-1 Mission का प्रमुख उद्देश्य शुक्र ग्रह का गहन अध्ययन करना है। इसमें शुक्र की सतह और वायुमंडल की जांच के साथ ही इसकी संरचना, गतिशीलता और भूवैज्ञानिक संरचना की जांच भी शुमार है।
- Shukrayaan-1 Mission सतह प्रक्रिया और उथले उपसतह स्ट्रैटिग्राफी (Shallow Subsurface Stratigraphy) की खोज करेगा।
- बता दें कि Shukrayaan-1 Mission में उपयोग की गई तकनीक दिन-रात या फिर किसी भी मौसम की स्थिति के बावजूद उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली फोटोज लेने में सक्षम होगी।
- यह मिशन शुक्र ग्रह के आयनमंडल, उत्सर्जन, ज्वालामुखीय गतिविधि, बादल आवरण और दूसरे प्लेनेटरी विशेषताओं के अलावा सौर पवन संपर्क का अध्ययन भी करेगा।
- बता दें कि शुक्र पर पिछले मिशनों ने सतह पर ग्रेनाइट जैसी चट्टानें खोजी हैं, जिन्हें बनाने के लिए ज्यादा मात्रा में पानी की जरूरत होती है, इसलिए उसका अध्ययन जरूरी है।

Shukrayaan-1 Mission के टीम में कौन कौन हैं?
किसी भी अंतरिक्ष मिशन की सक्सेस के पीछे पूरी टीम का हाथ होता है। सभी मिशन के डायरेक्टर होते हैं, जो अपनी टीम के साथ मिशन की रेखाचित्र बनाते हैं। साल 2018 के आखिर तक Venus यानी कि Shukrayaan-1 मिशन कॉन्फ़िगरेशन अध्ययन चरण में रहा है। Inter-University Centre for Astronomy and Astrophysics (IUCAA) के निदेशक सोमक रायचौधरी (Somak Raychaudhury) ने साल 2019 में बताया था कि ड्रोन जैसी इन्वेस्टिगेशन को इस मिशन का एक भाग माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि इसरो को साल 2017 में Shukrayaan-1 Mission के लिए भारत सरकार ने मंजूरी दे दी है।
इस ग्रह पर हो सकते हैं एलियन
दोस्तों, चांद और मंगल को लेकर यह स्पष्ट हो गया है कि वहां पर किसी भी प्रकार के कोई जीव नहीं रहते हैं। इन पर कई देश अपने मिशन भेज चुके हैं और अंतरिक्ष यात्री भी लैंड कर चुके हैं। हालांकि, शुक्र ग्रह को लेकर अभी तक सस्पेंस बना हुआ है। इसका कारण यहां के बादलों में पाया जाने वाला फॉस्फीन गैस (Phosphine Gas) को माना जाता है। माना जाता है कि यह गैस बैक्टीरिया से निकलती है। तो ऐसे में यहां पर किसी जीव के होने की संभावना हो सकती है। इसी के बाद से शुक्र ग्रह को लेकर अलग-अलग थ्योरी सामने आ रही हैं।
आपको बता दें कि अमेरिकन स्पेस एजेंसी NASA ने साल 1962 में पहली बार शुक्र ग्रह पर पहुंचने का काम किया था। वहीं, अब भारत शुक्र पर अपना स्पेसक्राफ्ट भेजने वाला चौथा देश बनेगा। इसरो यहां पर अपना ऑर्बिटर भेजेगा जो शुक्र के चारों ओर चक्कर लगाकर कई प्रकार की जानकारी भेजेगा।
Shukrayaan-1 Mission चार साल तक करेगा शुक्र ग्रह का अध्ययन
आपको बता दें कि Shukrayaan-1 Mission की लाइफ चार साल की होगी। यानि कि इतने वक्त के लिए यह स्पेस क्राफ्ट बनाया जाएगा। संभावना है कि शुक्रयान का वजन 2,500 किलोग्राम होगा। इसमें 100 किलोग्राम के पेलोड्स लगाए जाएंगे। इस मिशन के लिए अभी 18 पेलोड्स लगाने की खबर हैं। लेकिन यह बाद में तय किया जाएगा कि कितने पेलोड्स जाएंगे। बता दें कि Shukrayaan-1 Mission में जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस और रूस के पेलोड्स भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।